एक दिन मैं अपनी माँ से शिकायत कर रही थी जैसा कि आमतौर पर बच्चे करते हैं। मैं कॉलेज की छुट्टियों में घर वापस आ गयी थी । मेरा काम का बोझ बढ़ रहा था, और मैं इसे ठीक से मैनेज नहीं कर पा रही थी , इसलिए मैं थोड़ा तनाव में थी। मैं बस ये सब अपनी माँ को बता रही थी “कोई काम नहीं हो रहा है” “मैं मैनेज नहीं कर पा रही हूँ”। फिर मेरी माँ ने अचानक थोड़े जोर से कहा “आओ यहाँ बैठो, ध्यान से देखो, मैं तुम्हें दिखाती हूँ कि काम कैसे किया जाता है।” फिर उनहोने एक कटोरी में गाढ़ा सरसों का तेल लिया और खाली बजाज आलमंडल आयल की बोतल ली। उस शीशी के उपर ऐक छोटा सा छेद था, जैसे जयादतर केशमार्जन शीशीओ के ढकनो में होता है। जिसने भी कोशिश की है उसे पता है की इसके माध्यम से अंदर पानी डालना भी नामुम्किन के बराबर है। मेरी माँ ने देकते-देकते वह कटोरी उठाई और वो गारा सरसौ का तेल एक ही धारा में उस छेद के अंदर दाल दिया। में शब्दहीन रहे गया, एक बूंद भी इदर-उदर नहीं हाई थी। फिर मेरी माँ ने कहा ” यह, ऐसे होता है कोई भी काम, इस एकाग्रता से, और इसे ही ध्यान कहते है।
Well done Pihu.
Beautiful writing.
LikeLike